"hindi poetry on life"
दमकता अंगारा (Sparkling ember)(hindi poetry) :- " वक्त का दिया जलाये चल संसार की हवा से बचाये चल तेरी ही रोशनी से तू बढ़ेगा कदम "
दमकता अंगारा (Sparkling ember) hindi poetry on life दमकता अंगारा (Sparkling ember) (hindi poetry) |
अँगारे उमंग के
शायद दब से गये हैं राख में
अब वो आँच
महसूस ही नहीं होती
हवा के झोंके
रुक से गये हैं शायद
न राख उड़ती
न लपट उठती
गुजर भी जाये
बगल से कोई गर
उसकी महक
महसूस ही नहीं होती
वक्त के मानिंद
बदल तो जाता ही है सब
दाँत और बालों के बाद भी
उम्र जाती महसूस ही नहीं होती
क्या फर्क पड़ता है
मौसम को
दुख-सुख से तुम्हारे
खेल तो चलता ही है पर
न वक्त रुकता
न देह रुकती
फूकता रह इन
दबे अंगारों को "तूराज़"
राख की मोटी परत
बुझा न दे कहीं
न बैठ हाथ में हाथ धर
न कोई आया कभी
न आएगा, तेरे खातिर
तेरी ही आग
तेरे ही अंदर है
सुलगा तो सही
देखेंगे लोग कभी
अटारी पर चढ़-चढ़ कर
जब दमकेगा अंगारा
शोला बनकर
तूराज़
Grt.
ReplyDeletethanku sir.. hope your will like more
DeleteGrt.
ReplyDeleteThank you for sharing this.
ReplyDeleteForty years ago (I was a young bachelor then) once roaming around in the back street of Ballard Pier (Bombay then, now Mumbai) at six in the evening, I saw one young woman running to get in the bus. She was wearing a maroon saree and was around 25~30 years old. When I came back on the ship, I wrote this poem. As these days, I am compiling my work, I came across this and thought of posting hindi poetry blog here.