hindi poetry on life
वर्तमान में जीने की कला (Art of living life in present)
" वर्तमान में जीने की कला (Art of living life in present) "
hindi poetry
आओ थोड़ा सेंध
लगाएं मन की
जब भी जीवन की आपाधापी
भारी पड़ती जाती है हम पर
मन नाच उठता है
मस्ती में
रटन करता, और-और,
थोड़ा और की
तभी तुम आँखे बंद,
लम्बी साँसे लें
पूछ लेना अपने से
अंतर्मन में
मकसद जीवन का,
जग कर, देख लेना
भूत भविष्य का नटराज नृत्य
इस मन का
प्यार-पुचकार,
नन्हे बच्चे से, इस मन को
खींच लाओ, इस क्षण में
पूछो प्रश्न, एक ही इससे
"मैं अभी कहाँ हूँ,
क्या कर रहा हूँ ?"
अनंत समय से
उत्तर नहीं दे पाया है
ये अब तक
कभी कल में
और कभी, कल की में
खोया हो जो
कैसे कहे "अब की"
जब की जीवन
घट रहा है अभी
यहीं अभी
आओ थोड़ा सेंध लगाएं मन की
पूछें इससे "अब" की
इस क्षण की
तुराज
0 comments:
Post a Comment
please do not add any span message or link