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Monday, September 21, 2020

दहशत कोविड -19 महामारी का (Panic of Covid-19 Pandemic)

zoshh
"hindi poetry on life"
दहशत कोविड -19 महामारी  का (Panic of Covid-19 Pandemic) (hindi poetry) :- " ख़ौफ़ के मंझर भी अजीब होते हैं, कभी कौऐ चमगादड़ से, तो कभी दीवालों पे भी साये से दिखाई देते हैं "

corona panic covid 19-Pandemic-hindi-poetry-on-life
दहशत कोविड -19 महामारी  का (Panic of Covid-19 Pandemic)
(hindi poetry)

अभी तो पता ही चला था
अभी जाता-जाता सा क्यों है
कितने ही दिखते थे अपने मुझे,
यहाँ इक दौर में
अब गिनती में, कम से क्यों हैं

कभी सुबह से शाम तलक
जश्न-ए-महफिल, चला करती थी
बेलगाम वक्त का कांटा
अब थमा-थमा सा क्यों है
अभी तो पता ही चला था
अभी जाता-जाता सा क्यों है

कौन आया है शहर में ऐसा,
कि कोई शोर ही नहीं,
न मंदिरों में शंख-नाद है
न मस्जिदों में अजान है
ख़ौफ़ इतना है हर-तरफ,
कि चेहरा उड़ा-उड़ा सा है
बेलगाम वक्त का कांटा
क्यों थमा-थमा सा  है
अभी तो पता ही चला था

घर छोड़ने की जिद छोड़
बेघर से घर बेहतर है,
रोशनी की तू कर फिक्र
इस बार अमावस, 
लंबी सी है
बेलगाम वक्त का कांटा
थमा-थमा सा क्यों है
अभी तो पता ही चला था

किसको सुनाएं, 
फरयाद और पुकार अपनी
हर तरफ सन्नाटा सा जो है
कोई एक्का-दुक्का, 
दिखता भी है कभी  तो
चेहरे पर मास्क लगाए क्यों है
ख़ौफ़ इतना है कि शहर में
सन्नाटा सा पसरा क्यों है
बेलगाम वक्त का कांटा
थमा-थमा सा क्यों है
अभी तो पता ही चला था
अभी जाता-जाता सा क्यों है

 
तुराज







Thursday, September 17, 2020

दमकता अंगारा (Sparkling ember) (hindi poetry on life)

zoshh
"hindi poetry on life"
दमकता अंगारा (Sparkling ember)(hindi poetry) :- " वक्त का दिया जलाये चल संसार की हवा से बचाये चल तेरी ही रोशनी से तू बढ़ेगा कदम "

दमकता अंगारा (Sparkling ember) hindi poetry on life
दमकता अंगारा (Sparkling ember)
hindi poetry on life


दमकता अंगारा (Sparkling ember) (hindi poetry)
अँगारे उमंग के
शायद दब से गये हैं राख में
अब वो आँच
महसूस ही नहीं होती

हवा के झोंके
रुक से गये हैं शायद
न राख उड़ती
न लपट उठती
गुजर भी जाये
बगल से कोई गर
उसकी महक
महसूस ही नहीं होती

वक्त के मानिंद
बदल तो जाता ही है सब
दाँत और बालों के बाद भी
उम्र जाती महसूस ही नहीं होती

क्या फर्क पड़ता है
मौसम को
दुख-सुख से तुम्हारे
खेल तो चलता ही है पर
न वक्त रुकता
न देह रुकती

फूकता रह इन
दबे अंगारों को "तूराज़"
राख की मोटी परत
बुझा न दे  कहीं
न बैठ हाथ में हाथ धर
न कोई आया कभी
न आएगा, तेरे खातिर

तेरी ही आग 
तेरे ही अंदर है
सुलगा तो सही
देखेंगे लोग कभी
अटारी पर चढ़-चढ़ कर
जब दमकेगा अंगारा
शोला बनकर

तूराज़








आत्म - चिंतन (Self Reflection) (hindi poetry on life)

zoshh
"hindi poetry on life"
आत्म - चिंतन (Self - Reflection) (Hindi poetry) :- " ओस की बूंद का, दिनकर के आगे क्या परिचय ! कौन हूँ मैं, मेरा अपने से क्या परिचय ! "
आत्म - चिंतन (Self- Reflection) hindi poetry
आत्म-चिंतन (Self- Reflection)
hindi poetry on life
आत्म - चिंतन (Self - Reflection) (Hindi poetry)
अनंत श्रंखला है शायद 
मेरे आने-जाने की 
कितने बागों में अब तक 
फूल बनकर 
महका था मैं शायद 

भोरों की गुंजन 
अब तक कानों में है मेरे
कितना मधु बांटा 
 धरा पर है 
गंध बिखेरी
पूरब से लेकर दक्षिण तक मैंने

फिर, जब भी मैं 
लौट कर आता हूँ 
क्यों? तन्हा-तन्हा सा 
पाता हूँ अपने मैं
अनंत शृंखला है शायद 
मेरे आने-जाने की

सब जाना-पहचाना सा लगता है
ये धरती, ये अम्बर 
फैर्रिस्त बहुत लम्बी है
अपनी कारगुजारी की
पर, मन न भरा
अब तक भी 
कुछ करने को है
कब तक? 
ये सब करने को है 
इसीलिए-शायद 
अनंत शृंखला है 
मेरे आने-जाने की 
कौन हूँ मैं ?

तूराज़

 

 

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